المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

{قل لمن ما في السماوات والأرض قل لله كتب على - تفسير العز بن عبد السلام - جـ ١

[عز الدين بن عبد السلام]

فهرس الكتاب

- ‌1

- ‌2

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌1

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌43

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌57

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌61

- ‌62

- ‌63

- ‌64

- ‌65

- ‌66

- ‌67

- ‌68

- ‌69

- ‌71

- ‌72

- ‌73

- ‌74

- ‌75

- ‌76

- ‌78

- ‌79

- ‌80

- ‌81

- ‌84

- ‌85

- ‌87

- ‌88

- ‌89

- ‌90

- ‌91

- ‌93

- ‌94

- ‌96

- ‌97

- ‌98

- ‌102

- ‌104

- ‌106

- ‌109

- ‌114

- ‌115

- ‌116

- ‌117

- ‌118

- ‌119

- ‌121

- ‌124

- ‌125

- ‌126

- ‌127

- ‌128

- ‌129

- ‌130

- ‌132

- ‌135

- ‌137

- ‌138

- ‌140

- ‌142

- ‌143

- ‌144

- ‌145

- ‌146

- ‌147

- ‌148

- ‌149

- ‌150

- ‌151

- ‌152

- ‌153

- ‌154

- ‌155

- ‌156

- ‌157

- ‌158

- ‌159

- ‌160

- ‌161

- ‌163

- ‌164

- ‌165

- ‌166

- ‌176

- ‌168

- ‌169

- ‌170

- ‌171

- ‌173

- ‌174

- ‌175

- ‌177

- ‌179

- ‌180

- ‌181

- ‌182

- ‌183

- ‌184

- ‌185

- ‌186

- ‌187

- ‌188

- ‌189

- ‌190

- ‌191

- ‌194

- ‌195

- ‌196

- ‌197

- ‌198

- ‌199

- ‌200

- ‌201

- ‌203

- ‌204

- ‌205

- ‌206

- ‌207

- ‌208

- ‌209

- ‌210

- ‌211

- ‌212

- ‌213

- ‌215

- ‌216

- ‌217

- ‌218

- ‌219

- ‌220

- ‌221

- ‌222

- ‌223

- ‌224

- ‌225

- ‌226

- ‌227

- ‌228

- ‌229

- ‌230

- ‌231

- ‌232

- ‌233

- ‌234

- ‌235

- ‌236

- ‌237

- ‌238

- ‌239

- ‌240

- ‌241

- ‌243

- ‌245

- ‌246

- ‌247

- ‌248

- ‌249

- ‌251

- ‌255

- ‌256

- ‌257

- ‌258

- ‌259

- ‌260

- ‌261

- ‌262

- ‌263

- ‌264

- ‌265

- ‌266

- ‌267

- ‌269

- ‌271

- ‌273

- ‌274

- ‌275

- ‌276

- ‌278

- ‌279

- ‌280

- ‌281

- ‌282

- ‌283

- ‌284

- ‌285

- ‌286

- ‌3

- ‌37

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌23

- ‌24

- ‌26

- ‌27

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌61

- ‌64

- ‌67

- ‌66

- ‌71

- ‌73

- ‌74

- ‌75

- ‌77

- ‌79

- ‌81

- ‌83

- ‌90

- ‌92

- ‌93

- ‌96

- ‌97

- ‌99

- ‌100

- ‌102

- ‌103

- ‌106

- ‌110

- ‌113

- ‌117

- ‌118

- ‌121

- ‌122

- ‌123

- ‌124

- ‌125

- ‌127

- ‌128

- ‌130

- ‌131

- ‌135

- ‌137

- ‌138

- ‌140

- ‌141

- ‌143

- ‌144

- ‌145

- ‌146

- ‌148

- ‌152

- ‌153

- ‌154

- ‌155

- ‌159

- ‌161

- ‌164

- ‌165

- ‌166

- ‌167

- ‌168

- ‌196

- ‌170

- ‌173

- ‌175

- ‌176

- ‌179

- ‌180

- ‌186

- ‌187

- ‌188

- ‌193

- ‌194

- ‌195

- ‌196

- ‌199

- ‌200

- ‌1

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌24

- ‌25

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌46

- ‌47

- ‌49

- ‌51

- ‌53

- ‌54

- ‌65

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌62

- ‌65

- ‌69

- ‌71

- ‌75

- ‌77

- ‌78

- ‌79

- ‌80

- ‌81

- ‌82

- ‌83

- ‌85

- ‌86

- ‌87

- ‌88

- ‌90

- ‌91

- ‌92

- ‌93

- ‌94

- ‌100

- ‌101

- ‌102

- ‌103

- ‌104

- ‌105

- ‌112

- ‌117

- ‌119

- ‌123

- ‌127

- ‌128

- ‌129

- ‌133

- ‌134

- ‌135

- ‌137

- ‌141

- ‌142

- ‌148

- ‌149

- ‌153

- ‌154

- ‌155

- ‌157

- ‌158

- ‌159

- ‌171

- ‌174

- ‌175

- ‌176

- ‌1

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌8

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌15

- ‌16

- ‌18

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌33

- ‌34

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌48

- ‌51

- ‌52

- ‌54

- ‌55

- ‌62

- ‌63

- ‌64

- ‌66

- ‌67

- ‌70

- ‌71

- ‌75

- ‌82

- ‌83

- ‌87

- ‌89

- ‌90

- ‌94

- ‌95

- ‌96

- ‌97

- ‌100

- ‌101

- ‌102

- ‌103

- ‌106

- ‌107

- ‌109

- ‌110

- ‌111

- ‌112

- ‌113

- ‌114

- ‌115

- ‌116

- ‌1

- ‌2

- ‌3

- ‌8

- ‌9

- ‌13

- ‌14

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌23

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌38

- ‌44

- ‌50

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌57

- ‌60

- ‌61

- ‌62

- ‌65

- ‌66

- ‌67

- ‌69

- ‌70

- ‌71

- ‌73

- ‌74

- ‌75

- ‌76

- ‌77

- ‌82

- ‌83

- ‌89

- ‌91

- ‌92

- ‌93

- ‌94

- ‌95

- ‌96

- ‌98

- ‌99

- ‌100

- ‌103

- ‌105

- ‌108

- ‌109

- ‌110

- ‌111

- ‌112

- ‌114

- ‌115

- ‌120

- ‌121

- ‌122

- ‌124

- ‌125

- ‌126

- ‌127

- ‌128

- ‌129

- ‌130

- ‌131

- ‌132

- ‌135

- ‌136

- ‌137

- ‌138

- ‌139

- ‌141

- ‌142

- ‌143

- ‌145

- ‌146

- ‌151

- ‌152

- ‌153

- ‌154

- ‌158

- ‌159

- ‌160

- ‌162

- ‌164

- ‌165

- ‌1

- ‌2

- ‌4

- ‌8

- ‌11

- ‌13

- ‌14

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌20

- ‌22

- ‌24

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌31

- ‌32

- ‌37

- ‌40

- ‌41

- ‌43

- ‌46

- ‌48

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌58

- ‌69

- ‌71

- ‌73

- ‌74

- ‌78

- ‌79

- ‌82

- ‌83

- ‌86

- ‌89

- ‌92

- ‌94

- ‌96

- ‌100

- ‌101

- ‌102

- ‌105

- ‌111

- ‌117

- ‌118

- ‌120

- ‌127

- ‌128

- ‌129

- ‌130

- ‌131

- ‌133

- ‌134

- ‌137

- ‌139

- ‌141

- ‌142

- ‌143

- ‌145

- ‌146

- ‌150

- ‌155

- ‌156

- ‌157

- ‌159

- ‌161

- ‌163

- ‌165

- ‌167

- ‌168

- ‌169

- ‌171

- ‌172

- ‌175

- ‌176

- ‌179

- ‌180

- ‌181

- ‌182

- ‌186

- ‌187

- ‌188

- ‌189

- ‌195

- ‌199

- ‌200

- ‌201

- ‌203

- ‌204

- ‌205

- ‌206

- ‌1

- ‌{الأَنفَالِ}

- ‌2

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌19

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌46

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌57

- ‌58

- ‌60

- ‌61

- ‌64

- ‌65

- ‌67

- ‌68

- ‌70

- ‌72

- ‌73

الفصل: {قل لمن ما في السماوات والأرض قل لله كتب على

‌13

- {سَكَنَ} من السكنى، أو السكون خص السكون لأن الإنعام به أبلغ من الإنعام بالحركة.

ص: 430

‌14

- {فَاطِرِ} خالق ومبتدىء، ابن عباس - رضي الله تعالى عنهما - " كنت لا أدري ما فاطر حتى اختصم إليَّ أعرابيان في بئر، فقال أحدهما: أنا فطرتها أي ابتدأتها " أصل الفَطر: الشق، {مِن فُطُورٍ} [الملك: 3] شقوق. {يُطْعِمُ} يَرْزُق ولا يُرزق. {أَوَّلَ مَنْ أَسْلَمَ} من هذه الأمة. {وإن يمسسك الله بضر فلا كاشف له إلا هو وإن يمسسك بخير فهو على كل شيء قدير (17) وهو القاهر فوق عباده وهو الحكيم الخبير (18) قل أي شيء اكبر شهادة قل الله شهيد بيني وبينكم وأوحى إلي هذا القرءان لأنذركم به ومن بلغ أئنكم لتشهدون أن مع الله ءالهة أخرى قل لآ أشهد قل إنما هو إله واحد وإنني بريء مما تشركون (19) الذين ءاتيناهم

ص: 430