المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

وفي "فتح الرحمن": المجرم فاعل الجرائم، وهي صعاب المعاصي.   ‌ ‌33 - - تفسير حدائق الروح والريحان في روابي علوم القرآن - جـ ٢٨

[محمد الأمين الهرري]

فهرس الكتاب

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌57

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌سورة الطور

- ‌1

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌سورة النجم

- ‌(1):

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌(13)}

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌(24)}

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌(33)

- ‌(34)}

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌57

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌61

- ‌62

- ‌سورة القمر

- ‌(1)}

- ‌2

- ‌(3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌سورة الرحمن

- ‌(1)

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌(46)}

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌57

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌61

- ‌62

- ‌63

- ‌64

- ‌65

- ‌66

- ‌67

- ‌68

- ‌69

- ‌70

- ‌71

- ‌72

- ‌73

- ‌74

- ‌75

- ‌76

- ‌77

- ‌78

- ‌سورة الواقعة

- ‌(1

- ‌2

- ‌3

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌(40)}

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌47

- ‌48

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌57

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌61

- ‌62

- ‌63

- ‌64

- ‌65

- ‌66

- ‌67

- ‌68

- ‌69

- ‌70

- ‌71

- ‌72

- ‌73

- ‌74

- ‌75

- ‌76

- ‌77

- ‌78

- ‌79

- ‌80

- ‌81

- ‌82

- ‌83

- ‌84

- ‌85

- ‌86

- ‌87

- ‌88

- ‌89

- ‌ 90

- ‌91

- ‌ 92

- ‌93

- ‌94

- ‌95

- ‌96

- ‌سورة الحديد

- ‌(1):

- ‌2

- ‌(3):

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌19

- ‌20

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

الفصل: وفي "فتح الرحمن": المجرم فاعل الجرائم، وهي صعاب المعاصي.   ‌ ‌33 -

وفي "فتح الرحمن": المجرم فاعل الجرائم، وهي صعاب المعاصي.

‌33

- {لِنُرْسِلَ} ؛ أي: لننزل {عَلَيْهِمْ} من السماء {حِجَارَةً مِنْ طِينٍ} متحجّر كالآجرّ. وهو ما طبخ فصار في صلابة الحجارة، ومو السّجيل، يعني:(1) أنّ السّجيل حجارةٌ من طين طبخت بنار جهنم، مكتوب عليها أسماء القوم، ولو لم يقل:{مِنْ طِينٍ} لتوهّم أنّ المراد من الحجارة: البرد بقرينة إرسالها من السماء، فلمّا قيل:{مِنْ طِينٍ} اندفع ذلك الوهم؛ أي: لنرسل عليهم حجارة من طين بعدما قلبنا قراهم، وجعلنا عاليها سافلها.

قال السديّ ومقاتل: كانوا ست مئة ألف، فأدخل جبرائيل جناحه تحت الأرض فاقتلع قراهم - وكانت أربعة - ورفعها حتى سمع أهل السماء أصواتهم، ثم قلبها بأن جعل عاليها سافلها. ثم أرسل عليهم الحجارة فتتبعت الحجارة مسافريهم وشذاذهم؛ أي: المنفردين عن الجماعة.

‌34

- وانتصاب (2){مُسَوَّمَةً} على كونه صفة ثانية لـ {حِجَارَةً} ، أو على الحال من الضمير المستكن في الجار والمجرور، أو من الحجارة لكونها قد وصفت بالجار والمجرور. ومعنى {مُسَوَّمَةً}: مرسلةً من عند ربك من سوّمت الماشية؛ أي: أرسلتها لترعى لعدم الاحتياج إليها. قال سعديٌ المفتي: فيه أنّ الظاهر حينئذٍ من عند ربك بإثبات من الحجارة، انتهى. أو معلمةً بعلامات تعرف بها، من السومة وهي العلامة، قيل: كانت مخططة بسواد وبياض، وقيل: بسواد وحمرة، وقيل: معروفة بأنها حجارة العذاب. وقيل: معلّمة بسيما تتميّز بها عن حجارة الأرض. وقيل: مكتوب على كل حجر منها اسم من يرمى بها ويهلك.

وقوله: {عِنْدَ رَبِّكَ} ظرف لـ {مُسَوَّمَةً} ؛ أي: معلّمة عنده، أو مخزونةً عنده في خزائنه التي لا يتصرّف فيها غيره تعالى. {لِلْمُسْرِفِينَ}؛ أي: للمجاوزين الحدَّ في الفجور؛ إذ لم يقنعوا بما أبيح لهم من النساء للحرث، بل أتوا الذكران. وعن ابن عباس رضي الله عنهما:{لِلْمُسْرِفِينَ} ؛ أي: للمشركين، فإنَّ الشرك أسرف الذنوب وأعظمها.

(1) روح البيان.

(2)

فتح القدير.

ص: 9