المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

صهيب مرفوعا، وسكت عنه الحاكم، وقال الذهبي: " قلت: سنده - سلسلة الأحاديث الضعيفة والموضوعة وأثرها السيئ في الأمة - جـ ٤

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌المقدمة:

- ‌1501

- ‌1502

- ‌1503

- ‌1504

- ‌1505

- ‌1506

- ‌1507

- ‌1508

- ‌1509

- ‌1510

- ‌1511

- ‌1512

- ‌1513

- ‌1514

- ‌1515

- ‌1516

- ‌1517

- ‌1518

- ‌1519

- ‌1520

- ‌1521

- ‌1522

- ‌1523

- ‌1524

- ‌1525

- ‌1526

- ‌1527

- ‌1528

- ‌1529

- ‌1530

- ‌1531

- ‌1532

- ‌1533

- ‌1534

- ‌1535

- ‌1536

- ‌1537

- ‌1538

- ‌1539

- ‌1540

- ‌1541

- ‌1542

- ‌1543

- ‌1544

- ‌1545

- ‌1546

- ‌1547

- ‌1548

- ‌1549

- ‌1550

- ‌1551

- ‌1552

- ‌1553

- ‌1554

- ‌1555

- ‌1556

- ‌1557

- ‌1558

- ‌1559

- ‌1560

- ‌‌‌1561

- ‌1561

- ‌1562

- ‌1563

- ‌1564

- ‌1565

- ‌1566

- ‌1567

- ‌1568

- ‌1569

- ‌1570

- ‌1571

- ‌1572

- ‌1573

- ‌1574

- ‌1575

- ‌1576

- ‌1577

- ‌1578

- ‌1579

- ‌1580

- ‌1581

- ‌1582

- ‌1583

- ‌1584

- ‌1585

- ‌1586

- ‌1587

- ‌1588

- ‌1589

- ‌1590

- ‌1591

- ‌1592

- ‌1593

- ‌1594

- ‌1595

- ‌1596

- ‌1597

- ‌1598

- ‌1599

- ‌1600

- ‌1601

- ‌1602

- ‌1603

- ‌1604

- ‌1605

- ‌1606

- ‌1607

- ‌1608

- ‌1609

- ‌1610

- ‌1611

- ‌1613

- ‌1614

- ‌1615

- ‌1616

- ‌1617

- ‌1618

- ‌1619

- ‌1620

- ‌1621

- ‌1622

- ‌1623

- ‌1624

- ‌1625

- ‌1626

- ‌1627

- ‌1628

- ‌1629

- ‌1630

- ‌1631

- ‌1632

- ‌1633

- ‌1634

- ‌1635

- ‌1636

- ‌1637

- ‌1638

- ‌1639

- ‌1640

- ‌1641

- ‌1642

- ‌1643

- ‌1644

- ‌1645

- ‌1646

- ‌1647

- ‌1648

- ‌1649

- ‌1650

- ‌1651

- ‌1652

- ‌1653

- ‌1654

- ‌1655

- ‌1656

- ‌1657

- ‌1658

- ‌1659

- ‌1660

- ‌1661

- ‌1662

- ‌1663

- ‌1664

- ‌1665

- ‌1666

- ‌1667

- ‌1668

- ‌1669

- ‌1670

- ‌1671

- ‌1672

- ‌1673

- ‌1674

- ‌1675

- ‌1676

- ‌1677

- ‌1678

- ‌1679

- ‌1680

- ‌1681

- ‌1682

- ‌1683

- ‌1684

- ‌1685

- ‌1686

- ‌1687

- ‌1688

- ‌1689

- ‌1690

- ‌1691

- ‌1692

- ‌1693

- ‌1694

- ‌1695

- ‌1696

- ‌1697

- ‌1698

- ‌1699

- ‌1700

- ‌1701

- ‌1702

- ‌1703

- ‌1704

- ‌1705

- ‌1706

- ‌1707

- ‌1708

- ‌1709

- ‌1710

- ‌1711

- ‌1712

- ‌1713

- ‌1714

- ‌1715

- ‌1716

- ‌1717

- ‌1718

- ‌1719

- ‌1720

- ‌1721

- ‌1722

- ‌1723

- ‌1724

- ‌1725

- ‌1726

- ‌1728

- ‌1729

- ‌1730

- ‌1731

- ‌1732

- ‌1733

- ‌1734

- ‌1735

- ‌1736

- ‌1737

- ‌1738

- ‌1739

- ‌1740

- ‌1741

- ‌1742

- ‌1743

- ‌1744

- ‌1745

- ‌1746

- ‌1747

- ‌1748

- ‌1749

- ‌1750

- ‌1751

- ‌1752

- ‌1753

- ‌1754

- ‌1755

- ‌1756

- ‌1757

- ‌1758

- ‌1759

- ‌1760

- ‌1761

- ‌1762

- ‌1763

- ‌1764

- ‌1765

- ‌1766

- ‌1767

- ‌1768

- ‌1769

- ‌1770

- ‌1771

- ‌1772

- ‌1773

- ‌1774

- ‌1775

- ‌1776

- ‌1777

- ‌1778

- ‌1779

- ‌1780

- ‌1781

- ‌1782

- ‌1783

- ‌1784

- ‌1785

- ‌1786

- ‌1787

- ‌1788

- ‌1789

- ‌1790

- ‌1791

- ‌1792

- ‌1793

- ‌1794

- ‌1795

- ‌1796

- ‌1797

- ‌1798

- ‌1799

- ‌1800

- ‌1801

- ‌1802

- ‌1803

- ‌1804

- ‌1805

- ‌1806

- ‌1807

- ‌1808

- ‌1809

- ‌1810

- ‌1811

- ‌1812

- ‌1813

- ‌1814

- ‌1815

- ‌1816

- ‌1817

- ‌1818

- ‌1819

- ‌1820

- ‌1821

- ‌1822

- ‌1823

- ‌1824

- ‌1825

- ‌1826

- ‌1827

- ‌1828

- ‌1829

- ‌1830

- ‌1831

- ‌1832

- ‌1833

- ‌1834

- ‌1835

- ‌1836

- ‌1837

- ‌1838

- ‌1839

- ‌1840

- ‌1841

- ‌1842

- ‌1843

- ‌1844

- ‌1845

- ‌1846

- ‌1847

- ‌1848

- ‌1849

- ‌1850

- ‌1851

- ‌1852

- ‌1853

- ‌1854

- ‌1855

- ‌1856

- ‌1857

- ‌1858

- ‌1859

- ‌1860

- ‌1861

- ‌1862

- ‌1863

- ‌1864

- ‌1865

- ‌1866

- ‌1867

- ‌1868

- ‌1869

- ‌1870

- ‌1871

- ‌1872

- ‌1873

- ‌1874

- ‌1875

- ‌1876

- ‌1877

- ‌1878

- ‌1879

- ‌1880

- ‌1881

- ‌1882

- ‌1883

- ‌1884

- ‌1885

- ‌1886

- ‌1887

- ‌1888

- ‌1889

- ‌1890

- ‌1891

- ‌1893

- ‌1894

- ‌1895

- ‌1896

- ‌1897

- ‌1898

- ‌1899

- ‌1900

- ‌1901

- ‌1902

- ‌1903

- ‌1904

- ‌1905

- ‌1906

- ‌1907

- ‌1908

- ‌1909

- ‌1910

- ‌1911

- ‌1912

- ‌1913

- ‌1914

- ‌1915

- ‌1916

- ‌1917

- ‌1918

- ‌1919

- ‌1920

- ‌1921

- ‌1922

- ‌1923

- ‌1924

- ‌1925

- ‌1926

- ‌1927

- ‌1928

- ‌1929

- ‌1930

- ‌1931

- ‌1932

- ‌1933

- ‌1934

- ‌1935

- ‌1936

- ‌1937

- ‌1938

- ‌1939

- ‌1940

- ‌1941

- ‌1942

- ‌1943

- ‌1944

- ‌1946

- ‌1947

- ‌1948

- ‌1949

- ‌1950

- ‌1951

- ‌1952

- ‌1953

- ‌1954

- ‌1955

- ‌1956

- ‌1957

- ‌1958

- ‌1959

- ‌1960

- ‌1961

- ‌1962

- ‌1963

- ‌1964

- ‌1965

- ‌1966

- ‌1967

- ‌1968

- ‌1969

- ‌1970

- ‌1971

- ‌1972

- ‌1973

- ‌1974

- ‌1975

- ‌1976

- ‌1977

- ‌1978

- ‌1979

- ‌1980

- ‌1981

- ‌1982

- ‌1983

- ‌1984

- ‌1985

- ‌1986

- ‌1987

- ‌1988

- ‌1989

- ‌1990

- ‌1991

- ‌1992

- ‌1993

- ‌1994

- ‌1995

- ‌1996

- ‌1997

- ‌1998

- ‌1999

- ‌2000

الفصل: صهيب مرفوعا، وسكت عنه الحاكم، وقال الذهبي: " قلت: سنده

صهيب مرفوعا، وسكت عنه الحاكم، وقال الذهبي:" قلت: سنده واه ". وأقول: يوسف هذا أورده الذهبي في " الضعفاء والمتروكين "، وقال:" قال البخاري: فيه نظر ". وقال في أبيه: " قال البخاري: مختلف فيه ".

‌1794

- " ما أكل العبد طعاما أحب إلى الله من كد يده، ومن بات كالا من عمله بات مغفورا له ".

منكر.

رواه ابن عساكر (4 / 324 / 1) عن الحسن بن يوسف أخبرنا: هشام بن عمار أخبرنا بقية بن الوليد أخبرنا بحير بن سعد عن خالد بن معدان عن المقدام بن معدي كرب قال: رأيت النبي صلى الله عليه وسلم ذات يوم وهو باسط يديه، وهو يقول: فذكره. أورده في ترجمة الحسن بن يوسف وهو أبو سعيد الطرميسي مولى الحسن بن علي، ولم يذكر فيه جرحا ولا تعديلا، ومن فوقه ثقات غير أن هشاما فيه ضعف، وقد قال عن بقية: " أخبرنا بحير

"، فأخشى أن يكون تصريحه بسماع بقية من بحير وهما من هشام. والله أعلم.

ثم رأيت ابن عساكر رواه (4 / 337 / 2) من طريق ثقتين قالا: أخبرنا بقية عن بحير بن سعد به دون الشطر الثاني من الحديث. فهذه علة الحديث عنعنة بقية، لكن رواه أحمد (4 / 131) عنه مصرحا بالتحديث دون الزيادة، فالعلة تفرد الحسن بن يوسف بها. والشطر الأول من الحديث صحيح رواه ثور بن يزيد عن خالد بن معدان به وزاد:" وأن نبي الله داود كان يأكل من عمل يده ". أخرجه البخاري وغيره وجعل هذه الزيادة مكان قوله في هذا الحديث: " ومن بات كالا

". فهو منكر بهذا اللفظ.

ص: 277