المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

يتصور أن يحكم عليه بالضعف لأن نكارة تلك الأحاديث من جهة - سلسلة الأحاديث الصحيحة وشيء من فقهها وفوائدها - جـ ٥

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌2001

- ‌2002

- ‌2003

- ‌2004

- ‌2005

- ‌2006

- ‌2007

- ‌2008

- ‌2009

- ‌2010

- ‌2011

- ‌2012

- ‌2013

- ‌2014

- ‌2015

- ‌2016

- ‌2017

- ‌2018

- ‌2019

- ‌2020

- ‌2021

- ‌2022

- ‌2023

- ‌2024

- ‌2025

- ‌2026

- ‌2027

- ‌2028

- ‌2029

- ‌2030

- ‌2031

- ‌2032

- ‌2033

- ‌2034

- ‌2035

- ‌2036

- ‌2037

- ‌2038

- ‌2039

- ‌2040

- ‌2041

- ‌2042

- ‌2043

- ‌2044

- ‌2045

- ‌2046

- ‌2047

- ‌2048

- ‌2049

- ‌2050

- ‌2051

- ‌2052

- ‌2053

- ‌2054

- ‌2055

- ‌2056

- ‌2057

- ‌2058

- ‌2059

- ‌2060

- ‌2061

- ‌2062

- ‌2063

- ‌2064

- ‌2065

- ‌2066

- ‌2067

- ‌2068

- ‌2069

- ‌2070

- ‌2071

- ‌2072

- ‌2073

- ‌2074

- ‌2075

- ‌2076

- ‌2077

- ‌2078

- ‌2079

- ‌2080

- ‌2081

- ‌2082

- ‌2083

- ‌2084

- ‌2085

- ‌2086

- ‌2087

- ‌2088

- ‌2089

- ‌2090

- ‌2091

- ‌2092

- ‌2093

- ‌2094

- ‌2095

- ‌2096

- ‌2097

- ‌2098

- ‌2099

- ‌2100

- ‌2101

- ‌2102

- ‌2103

- ‌2104

- ‌2105

- ‌2106

- ‌2107

- ‌2108

- ‌2109

- ‌2110

- ‌2111

- ‌2112

- ‌2113

- ‌2114

- ‌2115

- ‌2116

- ‌2117

- ‌2118

- ‌2119

- ‌2120

- ‌2121

- ‌2122

- ‌2123

- ‌2124

- ‌2125

- ‌2126

- ‌2127

- ‌2128

- ‌2129

- ‌2130

- ‌2131

- ‌2132

- ‌2133

- ‌2134

- ‌2135

- ‌2136

- ‌2137

- ‌2138

- ‌2139

- ‌2140

- ‌2141

- ‌2142

- ‌2143

- ‌2144

- ‌2145

- ‌2146

- ‌2147

- ‌2148

- ‌2149

- ‌2150

- ‌2151

- ‌2152

- ‌2153

- ‌2154

- ‌2155

- ‌2156

- ‌2157

- ‌2158

- ‌2159

- ‌2160

- ‌2161

- ‌2162

- ‌2163

- ‌2164

- ‌2165

- ‌2166

- ‌2167

- ‌2168

- ‌2169

- ‌2170

- ‌2171

- ‌2172

- ‌2173

- ‌2174

- ‌2175

- ‌2176

- ‌2177

- ‌2178

- ‌2179

- ‌2180

- ‌2181

- ‌2182

- ‌2183

- ‌2184

- ‌2185

- ‌2186

- ‌2187

- ‌2188

- ‌2189

- ‌2190

- ‌2191

- ‌2192

- ‌2193

- ‌2194

- ‌2195

- ‌2196

- ‌2197

- ‌2198

- ‌2199

- ‌2200

- ‌2201

- ‌2202

- ‌2203

- ‌2204

- ‌2205

- ‌2206

- ‌2207

- ‌2208

- ‌2209

- ‌2210

- ‌2211

- ‌2212

- ‌2213

- ‌2214

- ‌2215

- ‌2216

- ‌2217

- ‌2218

- ‌2219

- ‌2220

- ‌2221

- ‌2222

- ‌2223

- ‌2224

- ‌2225

- ‌2226

- ‌2227

- ‌2228

- ‌2229

- ‌2230

- ‌2231

- ‌2232

- ‌2233

- ‌2234

- ‌2235

- ‌2236

- ‌2237

- ‌2238

- ‌2239

- ‌2240

- ‌2241

- ‌2242

- ‌2243

- ‌2244

- ‌2245

- ‌2246

- ‌2247

- ‌2248

- ‌2249

- ‌2250

- ‌2251

- ‌2252

- ‌2253

- ‌2254

- ‌2255

- ‌2256

- ‌2257

- ‌2258

- ‌2259

- ‌2260

- ‌2261

- ‌2262

- ‌2263

- ‌2264

- ‌2265

- ‌2266

- ‌2267

- ‌2268

- ‌2269

- ‌2270

- ‌2271

- ‌2272

- ‌2273

- ‌2274

- ‌2275

- ‌2276

- ‌2277

- ‌2278

- ‌2279

- ‌2280

- ‌2281

- ‌2282

- ‌2283

- ‌2284

- ‌2285

- ‌2286

- ‌2287

- ‌2288

- ‌2289

- ‌2290

- ‌2291

- ‌2292

- ‌2293

- ‌2294

- ‌2295

- ‌2296

- ‌2297

- ‌2298

- ‌2299

- ‌2300

- ‌2301

- ‌2302

- ‌2303

- ‌2304

- ‌2305

- ‌2306

- ‌2307

- ‌2308

- ‌2309

- ‌2310

- ‌2311

- ‌2312

- ‌2313

- ‌2314

- ‌2315

- ‌2316

- ‌2317

- ‌2318

- ‌2319

- ‌2320

- ‌2321

- ‌2322

- ‌2323

- ‌2324

- ‌2325

- ‌2326

- ‌2327

- ‌2328

- ‌2329

- ‌2330

- ‌2331

- ‌2332

- ‌2333

- ‌2334

- ‌2335

- ‌2336

- ‌2337

- ‌2338

- ‌2339

- ‌2340

- ‌2341

- ‌2342

- ‌2343

- ‌2344

- ‌2345

- ‌2346

- ‌2347

- ‌2348

- ‌2349

- ‌2350

- ‌2351

- ‌2352

- ‌2353

- ‌2354

- ‌2355

- ‌2356

- ‌2357

- ‌2358

- ‌2359

- ‌2360

- ‌2361

- ‌2362

- ‌2363

- ‌2364

- ‌2365

- ‌2366

- ‌2367

- ‌2368

- ‌2369

- ‌2370

- ‌2371

- ‌2372

- ‌2373

- ‌2374

- ‌2375

- ‌2376

- ‌2377

- ‌2378

- ‌2379

- ‌2380

- ‌2381

- ‌2382

- ‌2383

- ‌2384

- ‌2385

- ‌2386

- ‌2387

- ‌2388

- ‌2389

- ‌2390

- ‌2391

- ‌2392

- ‌2393

- ‌2394

- ‌2395

- ‌2396

- ‌2397

- ‌2398

- ‌2399

- ‌2400

- ‌2401

- ‌2402

- ‌2403

- ‌2404

- ‌2405

- ‌2406

- ‌2407

- ‌2408

- ‌2409

- ‌2410

- ‌2411

- ‌2412

- ‌2413

- ‌2414

- ‌2415

- ‌2416

- ‌2417

- ‌2418

- ‌2419

- ‌2420

- ‌2421

- ‌2422

- ‌2423

- ‌2424

- ‌2425

- ‌2426

- ‌2427

- ‌2428

- ‌2429

- ‌2430

- ‌2431

- ‌2432

- ‌2433

- ‌2434

- ‌2435

- ‌2436

- ‌2437

- ‌2438

- ‌2439

- ‌2440

- ‌2441

- ‌2442

- ‌2443

- ‌2444

- ‌2445

- ‌2446

- ‌2447

- ‌2448

- ‌2449

- ‌2450

- ‌2451

- ‌2452

- ‌2453

- ‌2454

- ‌2455

- ‌2456

- ‌2457

- ‌2458

- ‌2459

- ‌2460

- ‌2461

- ‌2462

- ‌2463

- ‌2464

- ‌2465

- ‌2466

- ‌2467

- ‌2468

- ‌2469

- ‌2470

- ‌2471

- ‌2472

- ‌2473

- ‌2474

- ‌2475

- ‌2476

- ‌2477

- ‌2478

- ‌2479

- ‌2480

- ‌2481

- ‌2482

- ‌2483

- ‌2484

- ‌2485

- ‌2486

- ‌2487

- ‌2488

- ‌2489

- ‌2490

- ‌2491

- ‌2492

- ‌2493

- ‌2494

- ‌2495

- ‌2496

- ‌2497

- ‌2498

- ‌2499

- ‌‌‌2500

- ‌2500

الفصل: يتصور أن يحكم عليه بالضعف لأن نكارة تلك الأحاديث من جهة

يتصور أن يحكم عليه بالضعف لأن نكارة

تلك الأحاديث من جهة الراوي عنه ". كذا قال، وهو وإن كان ينفي عنه مسئوليته

في تلك الأحاديث، فليس يعني أنه ثقة معروف الحفظ والضبط، كيف وهو قد أورده

في كتابه " ديوان الضعفاء والمتروكين "، وقال:" لا يحتج به "؟ والراوي

عنه هنا سعيد بن محمد، أظنه هو الوراق الثقفي أبا الحسن الكوفي نزيل بغداد،

فإنه من هذه الطبقة، وهو ضعيف كما قال الحافظ. وإبراهيم بن السري الهروي لم

أجد له ترجمة. لكن الحديث صحيح في نفسه، فإن الجملة الأولى منه وجدت لها

شاهدا، فقال ابن المبارك في " الزهد " (152) : أخبرنا بقية قال: سمعت ثابت

بن عجلان يقول: سمعت القاسم أبا عبد الرحمن يقول: قال رسول الله صلى الله

عليه وسلم: " لا أجر لمن لا حسبة له ". وهذا إسناد مرسل حسن، صرح فيه بقية

بالتحديث. والجملة الأخرى يشهد له الحديث المشهور: " إنما الأعمال بالنيات

". أخرجه الشيخان وغيرهما، وهو مخرج في " الإرواء " (1 / 59 / 22) .

‌2416

- " لا بأس بالحيوان واحد باثنين، يدا بيد ".

أخرجه الترمذي (1238) وابن ماجة (2 / 38) وأحمد (3 / 310، 380، 382)

وابن أبي شيبة (8 / 191 / 2) عن الحجاج بن أرطأة عن أبي الزبير عن جابر

ص: 538

مرفوعا. وقال الترمذي: " حديث حسن صحيح ". كذا قال، والحجاج وأبو الزبير

مدلسان. وقد نقل ابن التركماني في " الجوهر النقي "(5 / 290) عنه - أعني

الترمذي - أنه قال: " حديث حسن ". وهذا أقرب إلى الصواب، فإنه حين يقول

الترمذي في حديث ما: " حديث حسن ". فإنه لا يعني أنه حسن إسناده، وإنما

يعني أنه حسن لغيره، وهذا كذلك، فإني رأيت له شاهدا من رواية خلف بن خليفة

عن أبي جناب عن أبيه عن ابن عمر: "

فقام إليه رجل، فقال: يا رسول الله!

أرأيت الرجل يبيع الفرس بالأفراس والنجيبة بالإبل؟ قال: لا بأس إذا كان يدا

بيد ". أخرجه أحمد (2 / 109) والطبراني في " الكبير " كما في " مجمع

الزوائد " وقال (4 / 105) : " وفيه أبو جناب الكلبي، وهو مدلس ".

قلت: واسمه يحيى بن أبي حية، قال الحافظ:" ضعفوه لكثرة تدليسه ". ووالده

أبو حية مجهول. وخلف بن خليفة صدوق اختلط في الآخر. ويشهد للحديث أيضا حديث

سمرة وغيره مرفوعا:

ص: 539