المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

ولعل هذا الحديث الذي روي عن أيوب عن سعيد المقبري - سلسلة الأحاديث الصحيحة وشيء من فقهها وفوائدها - جـ ٤

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌1501

- ‌1502

- ‌1503

- ‌1504

- ‌1505

- ‌1506

- ‌1507

- ‌1508

- ‌1509

- ‌1510

- ‌1511

- ‌1512

- ‌1513

- ‌1514

- ‌1515

- ‌1516

- ‌1517

- ‌1518

- ‌1519

- ‌1520

- ‌1521

- ‌1522

- ‌1523

- ‌1524

- ‌1525

- ‌1526

- ‌1527

- ‌1528

- ‌1529

- ‌1530

- ‌1531

- ‌1532

- ‌1533

- ‌1534

- ‌1535

- ‌1536

- ‌1537

- ‌1538

- ‌1539

- ‌1540

- ‌1541

- ‌1542

- ‌1543

- ‌1544

- ‌1545

- ‌1546

- ‌1547

- ‌1548

- ‌1549

- ‌1550

- ‌1551

- ‌1552

- ‌1553

- ‌1554

- ‌1555

- ‌1556

- ‌1557

- ‌1558

- ‌1559

- ‌1560

- ‌1561

- ‌1562

- ‌1563

- ‌1564

- ‌1565

- ‌1566

- ‌1567

- ‌1568

- ‌1569

- ‌1570

- ‌1571

- ‌1572

- ‌1573

- ‌1574

- ‌1575

- ‌1576

- ‌1577

- ‌1578

- ‌1579

- ‌1580

- ‌1581

- ‌1582

- ‌1583

- ‌1584

- ‌1585

- ‌1586

- ‌1587

- ‌1588

- ‌1589

- ‌1590

- ‌1591

- ‌1592

- ‌1593

- ‌1594

- ‌1595

- ‌1596

- ‌1597

- ‌1598

- ‌1599

- ‌1600

- ‌1601

- ‌1602

- ‌1603

- ‌1604

- ‌1605

- ‌1606

- ‌1607

- ‌1608

- ‌1609

- ‌1610

- ‌1611

- ‌1612

- ‌1613

- ‌1614

- ‌1615

- ‌1616

- ‌1617

- ‌1618

- ‌1619

- ‌1620

- ‌1621

- ‌1622

- ‌1623

- ‌1624

- ‌1625

- ‌1626

- ‌1627

- ‌1628

- ‌1629

- ‌1630

- ‌1631

- ‌1632

- ‌1633

- ‌1634

- ‌1635

- ‌1636

- ‌1637

- ‌1638

- ‌1639

- ‌1640

- ‌1641

- ‌1642

- ‌1643

- ‌1644

- ‌1645

- ‌1646

- ‌1647

- ‌1648

- ‌1649

- ‌1650

- ‌1651

- ‌1652

- ‌1653

- ‌1654

- ‌1655

- ‌1656

- ‌1657

- ‌1658

- ‌1659

- ‌1660

- ‌1661

- ‌1662

- ‌1663

- ‌1664

- ‌1665

- ‌1666

- ‌1667

- ‌1668

- ‌1669

- ‌1670

- ‌1671

- ‌1672

- ‌1673

- ‌1674

- ‌1675

- ‌1676

- ‌1677

- ‌1678

- ‌1679

- ‌1680

- ‌1681

- ‌1682

- ‌1683

- ‌1684

- ‌1685

- ‌1686

- ‌1687

- ‌1688

- ‌1689

- ‌1690

- ‌1691

- ‌1692

- ‌1693

- ‌1694

- ‌1695

- ‌1696

- ‌1697

- ‌1698

- ‌1699

- ‌1700

- ‌1701

- ‌1702

- ‌1703

- ‌1704

- ‌1705

- ‌1706

- ‌1707

- ‌1708

- ‌1709

- ‌1710

- ‌1711

- ‌1712

- ‌1713

- ‌1714

- ‌1715

- ‌1716

- ‌1717

- ‌1718

- ‌1719

- ‌1720

- ‌1721

- ‌1722

- ‌1723

- ‌1724

- ‌1725

- ‌1726

- ‌1727

- ‌1728

- ‌1729

- ‌1730

- ‌1731

- ‌1732

- ‌1733

- ‌1734

- ‌1735

- ‌1736

- ‌1737

- ‌1738

- ‌1739

- ‌1740

- ‌1741

- ‌1742

- ‌1743

- ‌1744

- ‌1745

- ‌1746

- ‌1747

- ‌1748

- ‌1749

- ‌1750

- ‌1751

- ‌1752

- ‌1753

- ‌1754

- ‌1755

- ‌1756

- ‌1757

- ‌1758

- ‌1759

- ‌1760

- ‌1761

- ‌1762

- ‌1763

- ‌1764

- ‌1765

- ‌1766

- ‌1767

- ‌1768

- ‌1769

- ‌1770

- ‌1771

- ‌1772

- ‌1773

- ‌1774

- ‌1775

- ‌1776

- ‌1777

- ‌1778

- ‌1779

- ‌1780

- ‌1781

- ‌1782

- ‌1783

- ‌1784

- ‌1785

- ‌1786

- ‌1787

- ‌1788

- ‌1789

- ‌1790

- ‌1791

- ‌1792

- ‌1793

- ‌1794

- ‌1795

- ‌1796

- ‌1797

- ‌1798

- ‌1799

- ‌1800

- ‌1801

- ‌1802

- ‌1803

- ‌1804

- ‌1805

- ‌1806

- ‌1807

- ‌1808

- ‌1809

- ‌1810

- ‌1811

- ‌1812

- ‌1813

- ‌1814

- ‌1815

- ‌1816

- ‌1817

- ‌1818

- ‌1819

- ‌1820

- ‌1821

- ‌1822

- ‌1823

- ‌1824

- ‌1825

- ‌1826

- ‌1827

- ‌1828

- ‌1829

- ‌1830

- ‌1831

- ‌1832

- ‌1833

- ‌1834

- ‌1835

- ‌1836

- ‌1837

- ‌1838

- ‌1839

- ‌1840

- ‌1841

- ‌1842

- ‌1843

- ‌1844

- ‌1845

- ‌1846

- ‌1847

- ‌1848

- ‌1849

- ‌1850

- ‌1851

- ‌1852

- ‌1853

- ‌1854

- ‌1855

- ‌1856

- ‌1857

- ‌1858

- ‌1859

- ‌1860

- ‌1861

- ‌1862

- ‌1863

- ‌1864

- ‌1865

- ‌1866

- ‌1867

- ‌1868

- ‌1869

- ‌1870

- ‌1871

- ‌1872

- ‌1873

- ‌1874

- ‌1875

- ‌1876

- ‌1877

- ‌1878

- ‌1879

- ‌1880

- ‌1881

- ‌1882

- ‌1883

- ‌1884

- ‌1885

- ‌1886

- ‌1887

- ‌1888

- ‌1889

- ‌1890

- ‌1891

- ‌1892

- ‌1893

- ‌1894

- ‌1895

- ‌1896

- ‌1897

- ‌1898

- ‌1899

- ‌1900

- ‌1901

- ‌1902

- ‌1903

- ‌1904

- ‌1905

- ‌1906

- ‌1907

- ‌1908

- ‌1909

- ‌1910

- ‌1911

- ‌1912

- ‌1913

- ‌1914

- ‌1915

- ‌1916

- ‌1917

- ‌1918

- ‌1919

- ‌1920

- ‌1921

- ‌1922

- ‌1923

- ‌1924

- ‌1925

- ‌1926

- ‌1927

- ‌1928

- ‌1929

- ‌1930

- ‌1931

- ‌1932

- ‌1933

- ‌1934

- ‌1935

- ‌1936

- ‌1937

- ‌1938

- ‌1939

- ‌1940

- ‌1941

- ‌1942

- ‌1943

- ‌1944

- ‌1945

- ‌1946

- ‌1947

- ‌1948

- ‌1949

- ‌1950

- ‌1951

- ‌1952

- ‌1953

- ‌1954

- ‌1955

- ‌1956

- ‌1957

- ‌1958

- ‌1959

- ‌1960

- ‌1961

- ‌1962

- ‌1963

- ‌1964

- ‌1965

- ‌1966

- ‌1967

- ‌1968

- ‌1969

- ‌1970

- ‌1971

- ‌1972

- ‌1973

- ‌1974

- ‌1975

- ‌1976

- ‌1977

- ‌1978

- ‌1979

- ‌1980

- ‌1981

- ‌1982

- ‌1983

- ‌1984

- ‌1985

- ‌1986

- ‌1987

- ‌1988

- ‌1989

- ‌1990

- ‌1991

- ‌1992

- ‌1993

- ‌1994

- ‌1995

- ‌1996

- ‌1997

- ‌1998

- ‌1999

- ‌‌‌2000

- ‌2000

الفصل: ولعل هذا الحديث الذي روي عن أيوب عن سعيد المقبري

ولعل هذا الحديث الذي روي عن أيوب عن سعيد المقبري هو

أيوب أبو العلاء وهو أيوب بن مسكين ". ولعل هذا هو الصواب. والله أعلم.

وأيوب هذا صدوق له أوهام كما في " التقريب ". وابن إسحاق مدلس، ومن طريقه

أخرجه أبو داود (3537) مختصرا. وقد توبع، فقال أحمد (2 / 292) : حدثنا

يزيد: أنبأنا أبو معشر عن سعيد بن أبي سعيد المقبري به. وأبو معشر هذا اسمه

نجيح بن عبد الرحمن السندي المدني وفيه ضعف. ويزيد هو ابن هارون، فالظاهر

أن له فيه شيخين أيوب بن أبي مسكين وأبو معشر. وتابعه ابن عجلان عن المقبري

به. أخرجه البيهقي (6 / 180) ، فالحديث بمجموع هذه المتابعات صحيح. وله

طريق أخرى عن أبي هريرة مرفوعا مختصرا. أخرجه ابن حبان (1145) . وله عنده

وعند الضياء (62 / 281 / 2) شاهد من حديث ابن عباس. وسنده صحيح.

‌1685

- " إن رجلا قال: والله لا يغفر الله لفلان، وإن الله قال: من ذا الذي يتألى

علي أن لا أغفر لفلان؟! فإني قد غفرت لفلان، وأحبطت عملك. أو كما قال ".

رواه مسلم (8 / 36) وابن أبي الدنيا في " حسن الظن بالله "(190 / 1 - 2)

ص: 254

قالا - واللفظ لابن أبي الدنيا -: حدثنا سويد بن سعيد قال: حدثنا المعتمر بن

سليمان عن أبيه قال: حدثنا أبو عمران الجوني عن جندب أن رسول الله صلى

الله عليه وسلم حدث

فذكره. ثم رواه ابن أبي الدنيا من طريق أخرى موقوفا:

حدثنا أبو حفص الصفار قال: حدثنا جعفر بن سليمان قال: حدثنا أبو عمران الجوني

عن جندب بن عبد الله البجلي قال: فذكره موقوفا.

قلت: والإسناد الأول ضعيف، فإن سويد بن سعيد مع كونه من شيوخ مسلم، فقد ضعف

. بل روى الترمذي عن البخاري أنه ضعيف جدا. ونحوه ما روى الجنيدي عنه قال:

" فيه نظر، عمي فتلقن ما ليس من حديثه ". وقد أورده الذهبي في " الضعفاء "

وقال: " قال أحمد: متروك الحديث. وقال ابن معين: كذاب. وقال النسائي:

ليس بثقة. وقال البخاري.... وقال أبو حاتم: صدوق كثير التدليس. وقال

الدارقطني: ثقة غير أنه كبر: فربما قرىء عليه حديث فيه بعض النكارة فيجيزه "

. وقال الحافظ في " التقريب ": " صدوق في نفسه إلا أنه عمي فصار يتلقن ما ليس

من حديثه، وأفحش فيه ابن معين القول ".

قلت: فمثله لا تطمئن النفس للاحتجاج بخبره، لاسيما مع مجيئه موقوفا من الطريق

الأخرى، ورجالها ثقات غير أبي حفص الصفار فلم أعرفه الآن.

لكن وجدت لسويد بن سعيد متابعا، أخرجه البيهقي في " شعب الإيمان " (2 / 96 /

2) من طريق سويد بن سعيد وأبي سلمة يحيى بن خلف الباهلي كلاهما قالا: حدثنا

معتمر بن سليمان به مرفوعا. والباهلي هذا ثقة من شيوخ مسلم الذين احتج بهم في

" الصحيح ".

ص: 255