المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

‌ ‌107 - " ما نقض قوم العهد قط إلا كان - سلسلة الأحاديث الصحيحة وشيء من فقهها وفوائدها - جـ ١

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌‌‌1

- ‌1

- ‌2

- ‌3)

- ‌4

- ‌5

- ‌6

- ‌7

- ‌8)

- ‌9

- ‌10

- ‌11

- ‌12

- ‌13

- ‌14

- ‌15

- ‌16

- ‌17

- ‌18

- ‌20

- ‌19

- ‌21

- ‌22

- ‌23

- ‌24

- ‌25

- ‌26

- ‌27

- ‌28

- ‌29

- ‌30

- ‌31

- ‌32

- ‌33

- ‌34

- ‌35

- ‌36

- ‌37

- ‌38

- ‌39

- ‌40

- ‌41

- ‌42

- ‌43

- ‌44

- ‌45

- ‌46

- ‌47

- ‌ 48)

- ‌49

- ‌50

- ‌51

- ‌52

- ‌53

- ‌54

- ‌55

- ‌56

- ‌57

- ‌58

- ‌59

- ‌60

- ‌61

- ‌62

- ‌63

- ‌64

- ‌65

- ‌66

- ‌67

- ‌68

- ‌69

- ‌70

- ‌71

- ‌72

- ‌73

- ‌74

- ‌75

- ‌76

- ‌77

- ‌78

- ‌79

- ‌ 80) :

- ‌81

- ‌82

- ‌83

- ‌84

- ‌85

- ‌86

- ‌87

- ‌88

- ‌89

- ‌90

- ‌91

- ‌92

- ‌93

- ‌94

- ‌95

- ‌96

- ‌97

- ‌98

- ‌99

- ‌100

- ‌101

- ‌102

- ‌103

- ‌104

- ‌105

- ‌106

- ‌107

- ‌108

- ‌109

- ‌110

- ‌111

- ‌112

- ‌113

- ‌114

- ‌115

- ‌116

- ‌117

- ‌118

- ‌119

- ‌120

- ‌121

- ‌122

- ‌123

- ‌124

- ‌125

- ‌126

- ‌127

- ‌128

- ‌129

- ‌130

- ‌131

- ‌132

- ‌133

- ‌134

- ‌135

- ‌136

- ‌137

- ‌138

- ‌139

- ‌140

- ‌141

- ‌142

- ‌143

- ‌144

- ‌145

- ‌146

- ‌147

- ‌148

- ‌149

- ‌150

- ‌151

- ‌152

- ‌153

- ‌154

- ‌155

- ‌156

- ‌157

- ‌158

- ‌159

- ‌160

- ‌161

- ‌162

- ‌163

- ‌164

- ‌165

- ‌166

- ‌167

- ‌168

- ‌169

- ‌170

- ‌171

- ‌172

- ‌173

- ‌174

- ‌175

- ‌176

- ‌177

- ‌178

- ‌179

- ‌180

- ‌181

- ‌182

- ‌183

- ‌184

- ‌185

- ‌186

- ‌187

- ‌188

- ‌189

- ‌190

- ‌191

- ‌192

- ‌193

- ‌194

- ‌195

- ‌196

- ‌ 197)

- ‌198

- ‌199

- ‌200

- ‌201

- ‌202

- ‌203

- ‌204

- ‌205

- ‌206

- ‌207

- ‌208

- ‌209

- ‌210

- ‌211

- ‌212

- ‌213

- ‌214

- ‌215

- ‌216

- ‌217

- ‌218

- ‌219

- ‌220

- ‌221

- ‌222

- ‌223

- ‌224

- ‌225

- ‌226

- ‌227

- ‌228

- ‌229

- ‌230

- ‌231

- ‌232

- ‌233

- ‌234

- ‌235

- ‌236

- ‌237

- ‌238

- ‌239

- ‌240

- ‌241

- ‌242

- ‌243

- ‌244

- ‌245

- ‌246

- ‌247

- ‌248

- ‌249

- ‌250

- ‌251

- ‌252

- ‌253

- ‌254

- ‌255

- ‌256

- ‌257

- ‌258

- ‌259

- ‌260

- ‌261

- ‌262

- ‌263

- ‌264

- ‌265

- ‌266

- ‌267

- ‌268

- ‌269

- ‌270

- ‌271

- ‌272

- ‌273

- ‌274

- ‌275

- ‌276

- ‌277

- ‌278

- ‌279

- ‌280

- ‌281

- ‌282

- ‌283

- ‌284

- ‌285

- ‌286

- ‌287

- ‌288

- ‌289

- ‌290

- ‌291

- ‌292

- ‌293

- ‌294

- ‌295

- ‌296

- ‌297

- ‌298

- ‌299

- ‌300

- ‌301

- ‌302

- ‌303

- ‌304

- ‌305

- ‌306

- ‌307

- ‌308

- ‌309

- ‌310

- ‌311

- ‌312

- ‌313

- ‌314

- ‌315

- ‌316

- ‌317

- ‌318

- ‌319

- ‌320

- ‌321

- ‌322

- ‌323

- ‌324

- ‌325

- ‌326

- ‌327

- ‌328

- ‌329

- ‌330

- ‌331

- ‌332

- ‌333

- ‌334

- ‌335

- ‌336

- ‌337

- ‌338

- ‌339

- ‌340

- ‌341

- ‌342

- ‌343

- ‌344

- ‌345

- ‌346

- ‌347

- ‌348

- ‌349

- ‌350

- ‌351

- ‌352

- ‌353

- ‌354

- ‌355

- ‌356

- ‌357

- ‌358

- ‌359

- ‌360

- ‌361

- ‌362

- ‌363

- ‌364

- ‌365

- ‌366

- ‌367

- ‌368

- ‌369

- ‌370

- ‌371

- ‌372

- ‌373

- ‌374

- ‌375

- ‌376

- ‌377

- ‌378

- ‌379

- ‌380

- ‌381

- ‌382

- ‌383

- ‌384

- ‌385

- ‌386

- ‌387

- ‌388

- ‌389

- ‌390

- ‌391

- ‌392

- ‌393

- ‌394

- ‌395

- ‌396

- ‌397

- ‌398

- ‌399

- ‌400

- ‌401

- ‌402

- ‌403

- ‌404

- ‌405

- ‌406

- ‌407

- ‌408

- ‌409

- ‌410

- ‌411

- ‌412

- ‌413

- ‌414

- ‌415

- ‌416

- ‌417

- ‌418

- ‌419

- ‌420

- ‌421

- ‌422

- ‌423

- ‌424

- ‌425

- ‌426

- ‌427

- ‌428

- ‌429

- ‌430

- ‌431

- ‌432

- ‌433

- ‌434

- ‌435

- ‌436

- ‌437

- ‌438

- ‌439

- ‌440

- ‌441

- ‌442

- ‌443

- ‌444

- ‌445

- ‌446

- ‌447

- ‌448

- ‌449

- ‌450

- ‌451

- ‌452

- ‌453

- ‌454

- ‌455

- ‌456

- ‌457

- ‌458

- ‌459

- ‌460

- ‌461

- ‌462

- ‌463

- ‌464

- ‌465

- ‌466

- ‌467

- ‌468

- ‌469

- ‌470

- ‌471

- ‌472

- ‌473

- ‌474

- ‌475

- ‌476

- ‌477

- ‌478

- ‌479

- ‌480

- ‌481

- ‌482

- ‌483

- ‌484

- ‌485

- ‌486

- ‌487

- ‌488

- ‌489

- ‌490

- ‌491

- ‌492

- ‌493

- ‌494

- ‌495

- ‌496

- ‌497

- ‌498

- ‌499

- ‌‌‌500

- ‌500

الفصل: ‌ ‌107 - " ما نقض قوم العهد قط إلا كان

‌107

- " ما نقض قوم العهد قط إلا كان القتل بينهم، وما ظهرت فاحشة في قوم قط إلا

سلط الله عز وجل عليهم الموت، ولا منع قوم الزكاة إلا حبس الله عنهم القطر ".

رواه الحاكم (2 / 126) والبيهقي (3 / 346) من طريق بشير بن مهاجر عن

عبد الله بن بريدة عن أبيه.

وقال الحاكم: " صحيح على شرط مسلم "، ووافقه الذهبي.

قلت: وهو كما قالا، غير أن بشيرا هذا قد تكلم فيه من قبل حفظه، وفي

" التقريب " أنه صدوق لين الحديث. وقد خولف في إسناده، فقال البيهقي عقبه:

" كذا رواه بشير بن المهاجر ".

ثم ساق بإسناده من طريق الحسين بن واقد عن عبد الله بن بريده عن ابن عباس قال:

" ما نقض قوم العهد إلا سلط الله عليهم عدوهم، ولا فشت الفاحشة في قوم إلا

أخذهم الله بالموت، وما طفف قوم الميزان إلا أخذهم الله بالسنين، وما منع

قوم الزكاة إلا منعهم الله القطر من السماء، وما جار قوم في حكم إلا كان

البأس بينهم - أظنه قال - والقتل ".

قلت: وإسناده صحيح وهو موقوف في حكم المرفوع، لأنه لا يقال من قبل الرأي

وقد أخرجه الطبراني في " المعجم الكبير " مرفوعا من طريق أخرى: عن إسحاق

ابن عبد الله بن كيسان المروزي: حدثنا أبي عن الضحاك بن مزاحم عن

ص: 219

مجاهد

وطاووس عن ابن عباس.

قلت: وهذا إسناد ضعيف يستشهد به وقال المنذري في " الترغيب "(1 / 271) :

" وسنده قريب من الحسن، وله شواهد ".

قلت: ويبدو لي أن للحديث أصلا عن بريدة فقد وجدت لبعضه طريقا أخرى رواه

الطبراني في " الأوسط "(1 / 85 / 1 من الجمع بينه وبين الصغير) وتمام في

" الفوائد "(ق 148 - 149) عن مروان ابن محمد الطاطرى حدثنا سليمان بن موسى

أبو داود الكوفي عن فضيل بن مرزوق (وفي الفوائد فضيل بن غزوان) عن عبد الله

بن بريدة عن أبيه مرفوعا بلفظ:

" ما منع قوم الزكاة إلا ابتلاهم الله بالسنين ".

وقال الطبراني:

" لم يروه إلا سليمان تفرد به مروان ".

قلت: مروان ثقة، وسليمان بن موسى أبو داود الكوفي صويلح كما قال الذهبي،

وفضيل إن كان ابن مرزوق ففيه ضعف، وإن كان ابن غزوان فهو ثقة احتج به

الشيخان، فإن كان هو راوي الحديث فهو حسن إن شاء الله تعالى.

وقد قال المنذري (1 / 270) بعد ما عزاه للطبراني:

" ورواته ثقات ".

وبالجملة فالحديث بهذه الطرق والشواهد صحيح بلا ريب، وتوقف الحافظ ابن حجر

في ثبوته إنما هو باعتبار الطريق الأولى. والله أعلم.

ص: 220