المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

واعلم أنه لو صح ما تقدم عن ابن عباس؛ فإنه - سلسلة الأحاديث الضعيفة والموضوعة وأثرها السيئ في الأمة - جـ ١٠

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌المقدمة

- ‌4501

- ‌4502

- ‌4503

- ‌4504

- ‌4505

- ‌4506

- ‌4507

- ‌4508

- ‌4509

- ‌4510

- ‌4511

- ‌4512

- ‌4513

- ‌4514

- ‌4515

- ‌4516

- ‌4517

- ‌4518

- ‌4519

- ‌4520

- ‌4521

- ‌4522

- ‌4523

- ‌4524

- ‌4525

- ‌4526

- ‌4527

- ‌4528

- ‌4529

- ‌4530

- ‌4531

- ‌4532

- ‌4533

- ‌4534

- ‌4536

- ‌4537

- ‌4538

- ‌4539

- ‌4540

- ‌4541

- ‌4542

- ‌4543

- ‌4544

- ‌4545

- ‌4546

- ‌4547

- ‌4548

- ‌4549

- ‌4550

- ‌4551

- ‌4552

- ‌4553

- ‌4554

- ‌4555

- ‌4556

- ‌4557

- ‌4558

- ‌4559

- ‌4560

- ‌4561

- ‌4562

- ‌4563

- ‌4564

- ‌4565

- ‌4566

- ‌4567

- ‌4568

- ‌4569

- ‌4570

- ‌4571

- ‌4572

- ‌4573

- ‌4574

- ‌4575

- ‌4576

- ‌4577

- ‌4578

- ‌4579

- ‌4580

- ‌4581

- ‌4582

- ‌4583

- ‌4584

- ‌4585

- ‌4586

- ‌4587

- ‌4588

- ‌4589

- ‌4590

- ‌4591

- ‌4592

- ‌4593

- ‌4594

- ‌4595

- ‌4596

- ‌4597

- ‌4598

- ‌4599

- ‌4600

- ‌4601

- ‌4602

- ‌4603

- ‌4604

- ‌4605

- ‌4606

- ‌4607

- ‌4608

- ‌4609

- ‌4610

- ‌4611

- ‌4612

- ‌4613

- ‌4613 / م

- ‌4614

- ‌4615

- ‌4616

- ‌4617

- ‌4618

- ‌4619

- ‌4620

- ‌4621

- ‌4622

- ‌4623

- ‌4624

- ‌4625

- ‌4626

- ‌4627

- ‌4628

- ‌4629

- ‌4630

- ‌4631

- ‌4632

- ‌4633

- ‌4634

- ‌4635

- ‌4636

- ‌4637

- ‌4638

- ‌4639

- ‌4640

- ‌4641

- ‌4642

- ‌4643

- ‌4644

- ‌4645

- ‌4646

- ‌4647

- ‌4648

- ‌4649

- ‌4650

- ‌4651

- ‌4652

- ‌4653

- ‌4654

- ‌4655

- ‌4656

- ‌4657

- ‌4658

- ‌4659

- ‌4660

- ‌4661

- ‌4662

- ‌4663

- ‌4664

- ‌4665

- ‌4666

- ‌4668

- ‌4669

- ‌4670

- ‌4671

- ‌4672

- ‌4673

- ‌4674

- ‌4675

- ‌4676

- ‌4677

- ‌4678

- ‌4679

- ‌4680

- ‌4681

- ‌4682

- ‌4683

- ‌4684

- ‌4685

- ‌4686

- ‌4687

- ‌4688

- ‌4689

- ‌4690

- ‌4691

- ‌4692

- ‌4693

- ‌4694

- ‌4695

- ‌4696

- ‌4697

- ‌4698

- ‌4699

- ‌4700

- ‌4701

- ‌4702

- ‌4703

- ‌4704

- ‌4705

- ‌4706

- ‌4707

- ‌4708

- ‌4709

- ‌4710

- ‌4711

- ‌4712

- ‌4713

- ‌4714

- ‌4715

- ‌4716

- ‌4717

- ‌4718

- ‌4719

- ‌4720

- ‌4721

- ‌4722

- ‌4723

- ‌4724

- ‌4725

- ‌4726

- ‌4727

- ‌4728

- ‌4729

- ‌4730

- ‌4731

- ‌4732

- ‌4733

- ‌4734

- ‌4735

- ‌4736

- ‌4737

- ‌4738

- ‌4739

- ‌4740

- ‌4741

- ‌4742

- ‌4743

- ‌4744

- ‌4745

- ‌4746

- ‌4747

- ‌4748

- ‌4749

- ‌4750

- ‌4751

- ‌4752

- ‌4753

- ‌4754

- ‌4755

- ‌4756

- ‌4757

- ‌4758

- ‌4759

- ‌4760

- ‌4761

- ‌4762

- ‌4763

- ‌4764

- ‌4765

- ‌4766

- ‌4767

- ‌4768

- ‌4769

- ‌4770

- ‌4771

- ‌4772

- ‌4773

- ‌4774

- ‌4775

- ‌4776

- ‌4777

- ‌4778

- ‌4779

- ‌4780

- ‌4781

- ‌4782

- ‌4783

- ‌4784

- ‌4785

- ‌4786

- ‌4787

- ‌4788

- ‌4789

- ‌4790

- ‌4791

- ‌4792

- ‌4793

- ‌4794

- ‌4795

- ‌4796

- ‌4797

- ‌4798

- ‌4799

- ‌4800

- ‌4801

- ‌4802

- ‌4803

- ‌4804

- ‌4805

- ‌4806

- ‌4807

- ‌4808

- ‌4809

- ‌4810

- ‌4811

- ‌4812

- ‌4813

- ‌4814

- ‌4815

- ‌4816

- ‌4817

- ‌4818

- ‌4819

- ‌4820

- ‌4821

- ‌4822

- ‌4823

- ‌4824

- ‌4825

- ‌4826

- ‌4827

- ‌4828

- ‌4829

- ‌4830

- ‌4831

- ‌4833

- ‌4834

- ‌4835/ م

- ‌4836

- ‌4837

- ‌4839

- ‌4840

- ‌4841

- ‌4842

- ‌4843

- ‌4844

- ‌4845

- ‌4846

- ‌4847

- ‌4848

- ‌4849

- ‌4850

- ‌4851

- ‌4852

- ‌4853

- ‌4854

- ‌4855

- ‌4856

- ‌4857

- ‌4858

- ‌4859

- ‌4860

- ‌4861

- ‌4862

- ‌4863

- ‌4864

- ‌4865

- ‌4866

- ‌4867

- ‌4868

- ‌4869

- ‌4870

- ‌4871

- ‌4872

- ‌4873

- ‌4874

- ‌4875

- ‌4876

- ‌4877

- ‌4878

- ‌4879

- ‌4880

- ‌4881

- ‌4882

- ‌4883

- ‌4884

- ‌4885

- ‌4886

- ‌4887

- ‌4888

- ‌4889

- ‌4890

- ‌4891

- ‌4892

- ‌4893

- ‌4894

- ‌4895

- ‌4896

- ‌4897

- ‌4898

- ‌4899

- ‌4900

- ‌4901

- ‌4902

- ‌4903

- ‌4904

- ‌4905

- ‌4906

- ‌4907

- ‌4908

- ‌4909

- ‌4910

- ‌4911

- ‌4912

- ‌4913

- ‌4914

- ‌4915

- ‌4916

- ‌4917

- ‌4918

- ‌4919

- ‌4920

- ‌4921

- ‌4922

- ‌4923

- ‌4924

- ‌4925

- ‌4926

- ‌4927

- ‌4928

- ‌4929

- ‌4930

- ‌4931

- ‌4932

- ‌4933

- ‌4934

- ‌4935

- ‌4936

- ‌4937

- ‌4938

- ‌4939

- ‌4940

- ‌4941

- ‌4942

- ‌4943

- ‌4944

- ‌4945

- ‌4946

- ‌4947

- ‌4948

- ‌4949

- ‌4950

- ‌4951

- ‌4952

- ‌4953

- ‌4954

- ‌4955

- ‌4956

- ‌4957

- ‌4958

- ‌4959

- ‌4960

- ‌4961

- ‌4962

- ‌4963

- ‌4964

- ‌4965

- ‌4966

- ‌4967

- ‌4968

- ‌4969

- ‌4970

- ‌4971

- ‌4972

- ‌4973

- ‌4974

- ‌4975

- ‌4976

- ‌4977

- ‌4978

- ‌4979

- ‌4980

- ‌4981

- ‌4982

- ‌4983

- ‌4984

- ‌4985

- ‌4986

- ‌4987

- ‌4988

- ‌4989

- ‌4990

- ‌4991

- ‌4992

- ‌4993

- ‌4994

- ‌4995

- ‌4996

- ‌4997

- ‌4998

- ‌4999

- ‌5000

الفصل: واعلم أنه لو صح ما تقدم عن ابن عباس؛ فإنه

واعلم أنه لو صح ما تقدم عن ابن عباس؛ فإنه لا ينبغي أن يؤخذ منه إلا إباحة الاستمناء عند خشية الزنى لغلبة الشهوة.

وأنا أنصح من أصيب بها من الشباب أن يعالجوها بالصوم؛ فإنه له وجاء. كما صح عنه صلى الله عليه وسلم.

‌4852

- (لا يدخل ولد الزنى ولا شيء من نسله - إلى سبعة آباء - الجنة) .

موضوع

أخرجه عبد بن حميد في "المنتخب من المسند"(ق 157/ 1) : حدثنا عبد الرحمن بن سعد - وهو الرازي -: حدثنا عمرو بن أبي قيس عن إبراهيم بن مهاجر عن مجاهد عن محمد بن عبد الرحمن بن [أبي] ذباب عن أبي هريرة مرفوعاً به.

قلت: وهذا إسناد ضعيف؛ إبراهيم بن مهاجر - وهو البجلي - ضعيف؛ لسوء حفظه. وقال الحافظ في "التقريب":

"صدوق لين الحفظ".

وفي ترجمته ساق له الذهبي هذا الحديث؛ مشيراً إلى أنه من منكراته!

والأولى عندي: إعلاله بشيخ شيخه: ابن أبي ذباب؛ فقد قال الحافظ في "التقريب":

"شيخ لمجاهد، مجهول".

وسائر رجاله ثقات؛ على ضعف يسير في عمرو بن أبي قيس؛ وهو الرازي.

وعبد الرحمن بن سعد: هو ابن عبد الله بن سعد بن عثمان الدشتكي الرازي المقري.

ص: 428

والحديث؛ أورده ابن الجوزي في "الموضوعات". وقال:

"لا يصح؛ ابن مهاجر ضعيف".

قلت: أما الطرف الأول من الحديث - "لا يدخل ولد الزنى الجنة" -: فلا سبيل إلى الحكم عليه بالوضع، كما ذهب إليه الحافظ ابن حجر في "القول المسدد"، وتبعه السيوطي في "اللآلىء"(2/ 105-106) ، وابن عراق في "تنزيه الشريعة"(2/ 228-229) ، وذلك لأن له طرقاً أخرى، قد ملت من أجلها إلى تحسينه؛ كما تراه مخرجاً في "سلسلة الأحاديث الصحيحة"(673) .

ولذلك؛ فقد أخطأ الشيخ علي القاري في قوله - في كتابه "المصنوع في معرفة الحديث الموضوع" في هذا الحديث -:

"لا أصل له"! ومر عليه محقق الكتاب الشيخ أبو غدة، فلم يعلق عليه بشيء!

ووجه الخطأ: أن هذا يقول - "لا أصل له" -؛ إنما يراد به عند المتأخرين أنه لا إسناد له! فكيف يقال هذا؛ والحديث له عدة أسانيد؛ أحدها عند البخاري في "التاريخ الصغير"؟!

ثم إن هذا الطرف من الحديث ليس على ظاهره؛ لمخالفته لقوله تعالى: (ولا تزر وازرة وزر أخرى) ، ولذلك تأولوه على وجوه؛ ذكرت بعضها في الموضع المشار إليه من "الصحيحة".

قلت: ولعل الطرف الآخر من الحديث أصله من الإسرائيليات، فرفعه بعض الضعفاء قصداً أو سهواً؛ فقد ذكر السيوطي أن عبد الرزاق روى عن ابن التيمي قال: حدثني الربعي - وكان عندنا مثل وهب عندكم - أنه قرأ في بعض الكتب:

ص: 429