المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

وثانيا: أن مسلما أخرجه من طريق عبد الرزاق وغيره فكان عزوه - سلسلة الأحاديث الصحيحة وشيء من فقهها وفوائدها - جـ ٦

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌2501

- ‌2502

- ‌2503

- ‌2504

- ‌2505

- ‌2506

- ‌2507

- ‌2508

- ‌2509

- ‌2510

- ‌2511

- ‌2512

- ‌2513

- ‌2514

- ‌2515

- ‌2516

- ‌2517

- ‌2518

- ‌2519

- ‌2520

- ‌2521

- ‌2522

- ‌2523

- ‌2524

- ‌2525

- ‌2526

- ‌2527

- ‌2528

- ‌2529

- ‌2530

- ‌2531

- ‌2532

- ‌2533

- ‌2534

- ‌2535

- ‌2536

- ‌2537

- ‌2538

- ‌2539

- ‌2540

- ‌2541

- ‌2542

- ‌2543

- ‌2544

- ‌2545

- ‌2546

- ‌2547

- ‌2548

- ‌2549

- ‌2550

- ‌2551

- ‌2552

- ‌2553

- ‌2554

- ‌2555

- ‌2556

- ‌2557

- ‌2558

- ‌2559

- ‌2560

- ‌2561

- ‌2562

- ‌2563

- ‌2564

- ‌2565

- ‌2566

- ‌2567

- ‌2568

- ‌2569

- ‌2570

- ‌2571

- ‌2572

- ‌2573

- ‌2574

- ‌2575

- ‌2576

- ‌2577

- ‌2578

- ‌2579

- ‌2580

- ‌2581

- ‌2582

- ‌2583

- ‌2584

- ‌2585

- ‌2586

- ‌2587

- ‌2588

- ‌2589

- ‌2590

- ‌2591

- ‌2592

- ‌2593

- ‌2594

- ‌2595

- ‌2596

- ‌2597

- ‌2598

- ‌2599

- ‌2600

- ‌2601

- ‌2602

- ‌2603

- ‌2604

- ‌2605

- ‌2606

- ‌2607

- ‌2608

- ‌2609

- ‌2610

- ‌2611

- ‌2612

- ‌2613

- ‌2614

- ‌2615

- ‌2616

- ‌2617

- ‌2618

- ‌2619

- ‌2620

- ‌2621

- ‌2622

- ‌2623

- ‌2624

- ‌2625

- ‌2626

- ‌2627

- ‌2628

- ‌2629

- ‌2630

- ‌2631

- ‌2632

- ‌2633

- ‌2634

- ‌2635

- ‌2636

- ‌2637

- ‌2638

- ‌2639

- ‌2640

- ‌2641

- ‌2642

- ‌2643

- ‌2644

- ‌2645

- ‌2646

- ‌2647

- ‌2648

- ‌2649

- ‌2650

- ‌2651

- ‌2652

- ‌2653

- ‌2654

- ‌2655

- ‌2656

- ‌2657

- ‌2658

- ‌2659

- ‌2660

- ‌2661

- ‌2662

- ‌2663

- ‌2664

- ‌2665

- ‌2666

- ‌2667

- ‌2668

- ‌2669

- ‌2670

- ‌2671

- ‌2672

- ‌2673

- ‌2674

- ‌2675

- ‌2676

- ‌2677

- ‌2678

- ‌2679

- ‌2680

- ‌2681

- ‌2682

- ‌2683

- ‌2684

- ‌2685

- ‌2686

- ‌2687

- ‌2688

- ‌2689

- ‌2690

- ‌2691

- ‌2692

- ‌2693

- ‌2694

- ‌2695

- ‌2696

- ‌2697

- ‌2698

- ‌2699

- ‌2700

- ‌2701

- ‌2702

- ‌2703

- ‌2704

- ‌2705

- ‌2706

- ‌2707

- ‌2708

- ‌2709

- ‌2710

- ‌2711

- ‌2712

- ‌2713

- ‌2714

- ‌2715

- ‌2716

- ‌2717

- ‌2718

- ‌2719

- ‌2720

- ‌2721

- ‌2722

- ‌2723

- ‌2724

- ‌2725

- ‌2726

- ‌2727

- ‌2728

- ‌2729

- ‌2730

- ‌2731

- ‌2732

- ‌2733

- ‌2734

- ‌2735

- ‌2736

- ‌2737

- ‌2738

- ‌2739

- ‌2740

- ‌2741

- ‌2742

- ‌2743

- ‌2744

- ‌2745

- ‌2746

- ‌2747

- ‌2748

- ‌2749

- ‌2750

- ‌2751

- ‌2752

- ‌2753

- ‌2754

- ‌2755

- ‌2756

- ‌2757

- ‌2758

- ‌2759

- ‌2760

- ‌2761

- ‌2762

- ‌2763

- ‌2764

- ‌2765

- ‌2766

- ‌2767

- ‌2768

- ‌2769

- ‌2770

- ‌2771

- ‌2772

- ‌2773

- ‌2774

- ‌2775

- ‌2776

- ‌2777

- ‌2778

- ‌2779

- ‌2780

- ‌2781

- ‌2782

- ‌2783

- ‌2784

- ‌2785

- ‌2786

- ‌2787

- ‌2788

- ‌2789

- ‌2790

- ‌2791

- ‌2792

- ‌2793

- ‌2794

- ‌2795

- ‌2796

- ‌2797

- ‌2798

- ‌2799

- ‌2800

- ‌2801

- ‌2802

- ‌2803

- ‌2804

- ‌2805

- ‌2806

- ‌2807

- ‌2808

- ‌2809

- ‌2810

- ‌2811

- ‌2812

- ‌2813

- ‌2814

- ‌2815

- ‌2816

- ‌2817

- ‌2818

- ‌2819

- ‌2820

- ‌2821

- ‌2822

- ‌2823

- ‌2824

- ‌2825

- ‌2826

- ‌2827

- ‌2828

- ‌2829

- ‌2830

- ‌2831

- ‌2832

- ‌2833

- ‌2834

- ‌2835

- ‌2836

- ‌2837

- ‌2838

- ‌2839

- ‌2840

- ‌2841

- ‌2842

- ‌2843

- ‌2844

- ‌2845

- ‌2846

- ‌2847

- ‌2848

- ‌2849

- ‌2850

- ‌2851

- ‌2852

- ‌2853

- ‌2854

- ‌2855

- ‌2856

- ‌2857

- ‌2858

- ‌2859

- ‌2860

- ‌2861

- ‌2862

- ‌2863

- ‌2864

- ‌(2865)

- ‌2866

- ‌2867

- ‌2868

- ‌2869

- ‌2870

- ‌2871

- ‌2872

- ‌2873

- ‌2874

- ‌2875

- ‌2876

- ‌2877

- ‌2878

- ‌2879

- ‌2880

- ‌2881

- ‌2882

- ‌2883

- ‌2884

- ‌2885

- ‌2886

- ‌2887

- ‌2888

- ‌2889

- ‌2890

- ‌2891

- ‌2892

- ‌2893

- ‌2894

- ‌2895

- ‌2896

- ‌2897

- ‌2898

- ‌2899

- ‌2900

- ‌2901

- ‌2902

- ‌2903

- ‌2904

- ‌2905

- ‌2906

- ‌2907

- ‌2908

- ‌2909

- ‌2910

- ‌2911

- ‌2912

- ‌2913

- ‌2914

- ‌2915

- ‌2916

- ‌2917

- ‌2918

- ‌2919

- ‌2920

- ‌2921

- ‌2922

- ‌2923

- ‌2924

- ‌2925

- ‌2926

- ‌2927

- ‌2928

- ‌2929

- ‌2930

- ‌2931

- ‌2932

- ‌2933

- ‌2934

- ‌2935

- ‌2936

- ‌2937

- ‌2938

- ‌2939

- ‌2940

- ‌2941

- ‌2942

- ‌2943

- ‌2944

- ‌2945

- ‌2946

- ‌2947

- ‌2948

- ‌2949

- ‌2950

- ‌2951

- ‌2952

- ‌2953

- ‌2954

- ‌2955

- ‌2956

- ‌2957

- ‌2958

- ‌2959

- ‌2960

- ‌2961

- ‌2962

- ‌2963

- ‌2964

- ‌2965

- ‌2966

- ‌2967

- ‌2968

- ‌2969

- ‌2970

- ‌2971

- ‌2972

- ‌2973

- ‌2974

- ‌2975

- ‌2976

- ‌2977

- ‌2978

- ‌2979

- ‌2980

- ‌2981

- ‌2982

- ‌2983

- ‌2984

- ‌2985

- ‌2986

- ‌2987

- ‌2988

- ‌2989

- ‌2990

- ‌2991

- ‌2992

- ‌2993

- ‌2994

- ‌2995

- ‌2996

- ‌2997

- ‌2998

- ‌2999

- ‌‌‌3000

- ‌3000

الفصل: وثانيا: أن مسلما أخرجه من طريق عبد الرزاق وغيره فكان عزوه

وثانيا: أن مسلما أخرجه من

طريق عبد الرزاق وغيره فكان عزوه إليه أولى. وثالثا: ليس عند البخاري: "

فطيبها لنا "! وللحديث طريق آخر، يرويه معاذ بن هشام عن أبيه عن قتادة عن

سعيد بن المسيب عن أبي هريرة عن النبي صلى الله عليه وسلم: " أن نبيا من

الأنبياء غزا بأصحابه.. " الحديث بطوله، وفي آخره: " إن الله أطعمنا

الغنائم رحمة رحمنا بها، وتخفيفا خففه عنا، لما علم من ضعفنا ". أخرجه

بتمامه ابن حبان في " صحيحه "(7 / 149 / 4787) وكذا النسائي في " الكبرى "

(5 / 8878 و 6 / 352 / 11208) . قلت: وهذا إسناد صحيح على شرط الشيخين.

وقد مضى لفظه بتمامه، وتخريجه بأتم مما هنا في المجلد الأول (رقم 202) .

‌2743

- " يبايع لرجل بين الركن والمقام، ولن يستحل البيت إلا أهله، فإذا استحلوه

فلا تسأل عن هلكة العرب، ثم تأتي الحبشة فيخربونه خرابا لا يعمر بعده أبدا،

وهم الذين يستخرجون كنزه ".

أخرجه ابن أبي شيبة في " المصنف "(15 / 52 - 53) والحاكم (4 / 452 - 453)

والأزرقي " تاريخ مكة "(1 / 278) والبغوي في " الجعديات " (2 / 1005 /

2911) وعنه الذهبي في " سير الأعلام "(2 / 146) والطيالسي (2373)

وأحمد (2 / 291 و 312 و 328 و 351) من طرق عن ابن أبي ذئب

ص: 553

عن سعيد بن سمعان

قال: سمعت أبا هريرة يحدث أبا قتادة أن النبي صلى الله عليه وسلم قال:

فذكره. قلت: وهذا إسناد صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير سعيد بن سمعان،

وهو ثقة كما في " التقريب ". والحديث عزاه في " الجامع الكبير " لابن أبي

شيبة وابن عساكر فقط، واقتصر الحافظ في " الفتح "(3 / 461) على عزوه

لأحمد، وسكت عليه، فهو عنده حسن أو صحيح، وقال الحاكم: " صحيح على شرط

الشيخين "! ورده الذهبي بقوله: " قلت: ما خرجا لابن سمعان شيئا، ولا روى

عنه [غير] ابن أبي ذئب، وقد تكلم فيه ". قلت: لم يتكلم فيه غير الأزدي،

ولذلك رده الحافظ في " التقريب ": " ثقة، لم يصب الأزدي في تضعيفه ". قلت:

والأزدي عنده تشدد في التضعيف، نبه على ذلك الذهبي نفسه في بعض التراجم،

وابن سمعان وثقه النسائي والدارقطني وابن حبان. وأما قوله: " ولا روى عنه

ابن أبي ذئب " أظن سقط من قلمه أو الناسخ لفظ " غير "، فقد أثبت هو نفسه

روايته عنه في " الكاشف "! وقرن معه آخر!! وقد جاء من طريقين آخرين عن أبي

هريرة مختصرا مرفوعا بلفظ: " يخرب الكعبة ذو السويقتين من الحبشة ". الطريق

الأولى: عن الزهري عن سعيد بن المسيب عنه. أخرجه البخاري (1596) ومسلم (8

/ 183) وأحمد (2 / 310) والداني في " الفتن "(ق 69 / 2) وابن أبي شيبة

(15 / 47) والأزرقي (1 / 276) .

ص: 554