المَكتَبَةُ الشَّامِلَةُ السُّنِّيَّةُ

الرئيسية

أقسام المكتبة

المؤلفين

القرآن

البحث 📚

"صدوق عابد كثير الخطأ". قلت: فإعلال الحديث بالخشاب المتهم أولى. والله - سلسلة الأحاديث الضعيفة والموضوعة وأثرها السيئ في الأمة - جـ ١٣

[ناصر الدين الألباني]

فهرس الكتاب

- ‌المقدمة:

- ‌6001

- ‌6002

- ‌6003

- ‌6004

- ‌6005

- ‌6006

- ‌6007

- ‌6008

- ‌6009

- ‌6010

- ‌6011

- ‌6012

- ‌6013

- ‌6014

- ‌6015

- ‌6016

- ‌6017

- ‌6018

- ‌6019

- ‌6020

- ‌6021

- ‌6022

- ‌6023

- ‌6024

- ‌6025

- ‌6026

- ‌6027

- ‌6028

- ‌6029

- ‌6030

- ‌6031

- ‌6032

- ‌6033

- ‌6034

- ‌6035

- ‌6036

- ‌6037

- ‌6038

- ‌6039

- ‌6040

- ‌6041

- ‌6042

- ‌6043

- ‌6044

- ‌6045

- ‌6046

- ‌6047

- ‌6048

- ‌6049

- ‌6050

- ‌6051

- ‌6052

- ‌6053

- ‌6054

- ‌6055

- ‌6056

- ‌6057

- ‌6058

- ‌6059

- ‌6060

- ‌6061

- ‌6062

- ‌6063

- ‌6064

- ‌6065

- ‌6066

- ‌6067

- ‌6068

- ‌6069

- ‌6070

- ‌6071

- ‌6072

- ‌6073

- ‌6074

- ‌6075

- ‌6076

- ‌6077

- ‌6078

- ‌6079

- ‌6080

- ‌6081

- ‌6082

- ‌6083

- ‌6084

- ‌6085

- ‌6086

- ‌6087

- ‌6088

- ‌6089

- ‌6090

- ‌6091

- ‌6092

- ‌6093

- ‌6094

- ‌6095

- ‌6096

- ‌6097

- ‌6098

- ‌6099

- ‌6100

- ‌6101

- ‌6102

- ‌6103

- ‌6104

- ‌6105

- ‌6106

- ‌6107

- ‌6108

- ‌6109

- ‌6110

- ‌6111

- ‌6112

- ‌6113

- ‌6114

- ‌6115

- ‌6116

- ‌6117

- ‌6118

- ‌6119

- ‌6120

- ‌6121

- ‌6122

- ‌6123

- ‌6124

- ‌6125

- ‌6126

- ‌6127

- ‌6128

- ‌6129

- ‌6130

- ‌6131

- ‌6132

- ‌6133

- ‌6134

- ‌6135

- ‌6136

- ‌6137

- ‌6138

- ‌6139

- ‌6140

- ‌6141

- ‌6142

- ‌6143

- ‌6144

- ‌6145

- ‌6146

- ‌6147

- ‌6148

- ‌6149

- ‌6150

- ‌6151

- ‌6152

- ‌6153

- ‌6154

- ‌6155

- ‌6156

- ‌6157

- ‌6158

- ‌6159

- ‌6160

- ‌6161

- ‌6162

- ‌6163

- ‌6164

- ‌6165

- ‌6166

- ‌6167

- ‌6168

- ‌6169

- ‌6170

- ‌6171

- ‌6172

- ‌6173

- ‌6174

- ‌6175

- ‌6176

- ‌6177

- ‌6178

- ‌6179

- ‌6180

- ‌6181

- ‌6182

- ‌6183

- ‌6184

- ‌6185

- ‌6186

- ‌6188

- ‌6189

- ‌6190

- ‌6191

- ‌6192

- ‌6193

- ‌6194

- ‌6195

- ‌6196

- ‌6197

- ‌6198

- ‌6199

- ‌6200

- ‌6201

- ‌6202

- ‌6203

- ‌6204

- ‌6205

- ‌6206

- ‌6207

- ‌6208

- ‌6209

- ‌6210

- ‌6211

- ‌6212

- ‌6213

- ‌6214

- ‌6215

- ‌6216

- ‌6217

- ‌6218

- ‌6219

- ‌6220

- ‌6221

- ‌6222

- ‌6223

- ‌6224

- ‌6225

- ‌6226

- ‌6227

- ‌6228

- ‌6229

- ‌6230

- ‌6231

- ‌6232

- ‌6233

- ‌6234

- ‌6235

- ‌6236

- ‌6237

- ‌6238

- ‌6239

- ‌6240

- ‌6241

- ‌6242

- ‌6243

- ‌6244

- ‌6245

- ‌6246

- ‌6247

- ‌6248

- ‌6249

- ‌6250

- ‌6251

- ‌6252

- ‌6253

- ‌6254

- ‌6255

- ‌6256

- ‌6257

- ‌6258

- ‌6259

- ‌6260

- ‌6261

- ‌6262

- ‌6263

- ‌6264

- ‌6265

- ‌6266

- ‌6268

- ‌6269

- ‌6270

- ‌6271

- ‌6272

- ‌6273

- ‌6274

- ‌6275

- ‌6276

- ‌6277

- ‌6278

- ‌6279

- ‌6280

- ‌6281

- ‌6282

- ‌6283

- ‌6284

- ‌6285

- ‌6286

- ‌6287

- ‌6288

- ‌6289

- ‌6290

- ‌6291

- ‌6292

- ‌6293

- ‌6294

- ‌6295

- ‌6296

- ‌6297

- ‌6298

- ‌6299

- ‌6300

- ‌6301

- ‌6302

- ‌6302/ م

- ‌6303

- ‌6304

- ‌6304/ م

- ‌6305

- ‌6306

- ‌6307

- ‌6308

- ‌6309

- ‌6310

- ‌6311

- ‌6312

- ‌6313

- ‌6314

- ‌6315

- ‌6316

- ‌6317

- ‌6318

- ‌6319

- ‌6320

- ‌6321

- ‌6322

- ‌6323

- ‌6324

- ‌6325

- ‌6326

- ‌6327

- ‌6328

- ‌6329

- ‌6330

- ‌6331

- ‌6332

- ‌6333

- ‌6334

- ‌6335

- ‌6336

- ‌6337

- ‌6338

- ‌6339

- ‌6340

- ‌6341

- ‌6342

- ‌6343

- ‌6344

- ‌6345

- ‌6346

- ‌6347

- ‌6348

- ‌6349

- ‌6350

- ‌6351

- ‌6352

- ‌6353

- ‌6354

- ‌6355

- ‌6356

- ‌6357

- ‌6358

- ‌6359

- ‌6360

- ‌6361

- ‌6362

- ‌6363

- ‌6364

- ‌6365

- ‌6366

- ‌6367

- ‌6368

- ‌6369

- ‌6370

- ‌6371

- ‌6372

- ‌6373

- ‌6374

- ‌6375

- ‌6376

- ‌6377

- ‌6378

- ‌6379

- ‌6380

- ‌6381

- ‌6382

- ‌6383

- ‌6384

- ‌6385

- ‌6386

- ‌6387

- ‌6388

- ‌6389

- ‌6390

- ‌6391

- ‌6392

- ‌6393

- ‌6394

- ‌6395

- ‌6396

- ‌6397

- ‌6398

- ‌6399

- ‌6400

- ‌6401

- ‌6402

- ‌6403

- ‌6404

- ‌6405

- ‌6406

- ‌6407

- ‌6408

- ‌6409

- ‌6410

- ‌6411

- ‌6412

- ‌6413

- ‌6414

- ‌6415

- ‌6416

- ‌6417

- ‌6418

- ‌6419

- ‌6420

- ‌6421

- ‌6422

- ‌6423

- ‌6424

- ‌6426

- ‌6427

- ‌6428

- ‌6429

- ‌6430

- ‌6431

- ‌6432

- ‌6433

- ‌6434

- ‌6435

- ‌6436

- ‌6437

- ‌6438

- ‌6439

- ‌6440

- ‌6441

- ‌6442

- ‌6443

- ‌6444

- ‌6445

- ‌6446

- ‌6447

- ‌6448

- ‌6449

- ‌6450

- ‌6451

- ‌6452

- ‌6453

- ‌6454

- ‌6455

- ‌6456

- ‌6457

- ‌6458

- ‌6459

- ‌6460

- ‌6461

- ‌6462

- ‌6463

- ‌6464

- ‌6465

- ‌6466

- ‌6467

- ‌6468

- ‌6469

- ‌6470

- ‌6471

- ‌6472

- ‌6473

- ‌6474

- ‌6475

- ‌6476

- ‌6477

- ‌6478

- ‌6479

- ‌6480

- ‌6481

- ‌6482

- ‌6483

- ‌6484

- ‌6485

- ‌6486

- ‌6487

- ‌6488

- ‌6489

- ‌6490

- ‌6491

- ‌6492

- ‌6493

- ‌6494

- ‌6495

- ‌6496

- ‌6497

- ‌6498

- ‌6499

- ‌6500

الفصل: "صدوق عابد كثير الخطأ". قلت: فإعلال الحديث بالخشاب المتهم أولى. والله

"صدوق عابد كثير الخطأ".

قلت: فإعلال الحديث بالخشاب المتهم أولى. والله أعلم.

وقد روي الحديث مرسلاً، وزاد في بعض الروايات:

"وأعلى عليين لأولي الألباب ".

وفي إسناده ضعيف، ومن لم أعرفه. وهو مخرج في تعليقي على "شرح العقيدة

الطحاوية" (ص 573 - 575)، ورددت فيه على قول الشيخ أحمد شاكر رحمه الله:

"ومجموع ما قيل فيه: أنه لا أصل له "! فراجعه إن شئت.

وكيف يصح أن يقال هذا والبزار يقول عقب الحديث:

" لو صح؛ كان له معنى". وقال الطحاوي - بعد أن ساقه بإسناده مساق

المسلمات -:

"فذكرت هذا الحديث لأحمد بن أبي عمران؟ فقال لي: معناه معنى

صحيح، فـ:(البله) المرادون فيه: هم البله عن محارم الله تعالى؛ لا من سواهم

ممن به نقص العقل بالبله "؟!

‌6155

- (سَيَكُونُ بَعْدِي فِتَنٌ شَدَّادٌ، خَيْرُ النَّاسِ فِيهَا مُسْلِمُو أَهْلِ

الْبَوَادِي؛ الَّذِينَ لا يَتَنَدُّونَ مِنْ دِمَاءِ النَّاسِ (وفي رواية: المسلمين) ،

وَلا أَمْوَالِهِمْ شَيْئاً) .

ضعيف.

أخرجه الطبراني في "المعجم الكبير"(22/365/914) وفي "المعجم

الأوسط " (1/289/4839 - بترقيمي) و"مسند الشاميين " (2/393/1562) ، وابن

ص: 353

عساكر في "تاريخ دمشق "(5/391) من طريق أبي معبد حفص بن غيلان عن

حيان بن حجر عن أبي الغادية المزني

مرفوعاً.

قلت: ورجال إسناده ثقات؛ غير حيان بن حجر، يبدو أنه لا يعرف إلا بهذه

الرواية؛ ففي ترجمته أخرج ابن عساكر هذا الحديث، ولم يذكر له راوياً غير

حفص هذا، وروى عن ابن أبي حاتم أنه قال:

"حيان بن حجر الدمشقي، سمعت أبي يقول ذلك ". ولم يزد!

وليس له ذكر في "الجرح والتعديل "؛ ولذلك قال الذهبي في "الميزان " - وتبعه

الحافظ في "اللسان " -:

"لا يدرى من ذا؟ ". وقال الهيثمي في "المجمع "(7/304) :

"رواه الطبراني في "الأوسط " و "الكبير"، وفيه حيان بن حجر

ولم أعرفه،

وبقية رجاله ثقات ".

ومن طبقته حيان بن جحدر أبو السمين الطائي: قال ابن أبي حاتم:

"روى عَنْ ابْنِ عُمَرَ، روى عنه عتبة بن أبي سليمان

قال ابن معين: ليس

به بأس ". وكذا ترجمه ابن حبان في "الثقات " (4/ 171) دون قول ابن معين، وقال:

"وقد قيل: إنه حيان بن حجر".

فالله أعلم هل هو هذا أم غيره؟

قوله: (لا يتندون) ؛ أي: لا يصيبهم من دماء المسلمين شيء - كما في الحديث

الآخر: "من لقي الله لا يشرك به شيئاً، لم يتند بدم حرام؛ دخل الجنة" - وهو مخرج

في الكتاب الآخر: "الصحيحة"(2923)، قال ابن الأثير في "النهاية":

ص: 354